कामिनी ने बनाई सोहराय, कोहबर पेंटिंग से अपनी पहचान

Frontline News Desk
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कामिनी ने बनाई सोहराय, कोहबर पेंटिंग से अपनी पहचान

-सौ से ज्यादा महिलाएं जुड़ कर रही है काम
-सभी को देती है फ्री में ट्रेनिंग
-काम भी उपलब्ध कराती है कामिनी
-2012 में सरकार भी कर चुकी है सम्मानित

 

Ranchi : सोहराय, कोहबर और मधुबनी पेंटिंग झारखंड की पहचान है. आज भले इसका अस्तित्व मिटता जा रहा है. लेकिन सरकार की और से इस पेंटिंग को संरक्षित रखने और इसका विकास करने में पूरा जोर है. झारखंड की पहचान सोहराय पेंटिंग को सहेजने में रांची की एक महिला कामिनी सिन्हा अपना प्रमुख योगदान दे रही है. कामिनी दस सालों से सोहराय को बचाने एवं इस कला को लोगों तक पहुंचाने का भी महत्वपूर्ण का काम कर रही है. रांची के बूटी मोड़ की रहने वाली कामिनी सिन्हा लड़कियों को फ्री में इस कला की बारिकियां सिखाती है. साल 2012 में ही कामिनी को इस काम के लिए स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. उनका कहना है शुरुआत में काफी परेशानी होती थी लोग इसे सिखना नहीं चाहते थे. लेकिन आज सौ लोगों की एक टीम खडी हो चुकी है. अपने साथ-साथ सौ और घरों का चूल्हा इसी कला से जल रहा है. एमएससी की पढाई करन वाली कामिनी बताती है उनकी जॉब हाई स्कूल बिहार टीचर में हो चुका था लेकिन उसे छोड करन इन्होंने सोहराय कला को ही अपना प्रोफेशन बनाया.

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कपड़ों में बनाती है खूबसूरत पेंटिंग

कामिनी और उनकी टीम कपड़ों पर खूबसूरत पेंटिंग बनाती है. साडी, दुपट्टा, स्टॉल, बेडशीट, पिलो कवर, कर्टन, कुशन कवर से लेकर अन्य कपड़ों पर बेहतरीन डिजाइन कर उसे पेटिंग से सजाती है. इन सभी प्रोडक्ट को टीम की और से संचालित हो रहे शॉप के माध्यम सेल किया जाता है. जिससे इस काम से जुडी से सभी महिलाओं को कुछ आमदनी हो जाती है. कामिनी बताती है कि उनकी टीम के मेंबर देश भर में इसका एग्जीबिशन भी लगाते है. यहां तक की स्वीजरलैंड और दुबई में भी एग्जीबिशन लगाया चुका है. इसलिए सभी जगहों से इन सोहराय, कोहबर पेंटिंग से सजे परिधानों की डिमांड आती रहती है. कामिनी ने बताया कि सीखने की ललक रखने वाली महिलाओं को सभी कला फ्री में सिखाती है. कपड़ों पर खूबसूरत नक्काशी करने की ट्रैनिंग भी मुफ्त में ही देती है. इनसे सीख कर आज कई महिलाएं अपने पैरों पर खडी है.

लॉकडाउन में छूट गई पती की नौकरी सोहराय ने ही जिंदा रखा

कामिनी की टीम में काम करने वाली सोमा बनर्जी ने बताया कि लॉकडाउन जैसे भीषण समय पर इसी पेंटिंग की वजह से थोडी बहुत आमदनी होती रही. कोरोना काल में पति की नौकरी छूट जाने से परिवार पर बहुत बड़ा संकट आ गया था. लेकिन सोहराय पेंटिंग इन्होंने सीख रखा था इसलिए कुछ-कुछ काम होता रहा. सोमा ने बताया कि लॉकडाउन समय में सोहराय पेंटिंग ही उन्हें और उनके परिवार को जिंदा रखा. यदि यह कला नहीं आती तो परिणाम बुरा हो सकता था. हर व्यक्ति को कुछ न कुठ हुनर जरुर सीख कर रखना चाहिए. उन्होंने कहा वे सभी सामान ले कर घर पे चली जाती है वहीं से काम कर तैयार प्रोडक्ट लाकर दे देती है. बिकने पर उनका मेहनताना मिल जाता है. सोमा की ही तरह कई महिलाएं और लड़किया कामिनी के साथ काम करती है.

क्या है सोहराय पेंटिंग

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झारखंड की संस्कृति में सोहराई कला का महत्व सदियों से रहा है. 3000 से लेकर 4000 वर्ष पहले से यह संस्कृति समाज का हिस्सा रही है. बदलते समय और आधुनिकता के कारण कला उपेक्षित होता चला गया और इसके अस्तित्व पर भी संकट बनकर आ खड़ा हुआ. सोहराई कला आदिवासी बहुल क्षेत्रों में देखने को मिलता है, जहां घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों के हुनर से सजे घर देखने को मिलते है. इस पेंटिंग की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मन की बात में कर चुके है.

 

मैं दस साल से इस प्रोफेशन में हूं. मेरा गर्वमेंट जॉब हो चुका था. लेकिन वहां न जाकर मैने सोहराय, कोहबर और मधुबनी को अपना प्रोफेशन बनाया. आज मेरे साथ सौ से ज्यादा महिलाएं जुडी हुई है.-कामिनी सिन्हा

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मैं इस पेंटिंग को पहले शौक के लिए करती थी. लेकिन लॉकडाउन में इसी पेंटिंग से जीवन यापन हुआ. मैडम ने फ्री में पेंटिंग के गुर सिखाए थे. अब मैडम ही काम भी दे रही है.-सोमा बनर्जी

मैं पांच साल से सोहराय पेंटिंग कर रहीं हूं. अब मैं कपड़ों पर सभी प्रकार की पेंटिंग उकेर लेती हूं. यहां की कमाई से अपने परिवार की भी मदद कर रहीं हूं.- प्रिया कुमारी

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