छापर बालू घाट,जहाँ माफियाओं का है राज
बुढ़मू : विवादों के घेरे में छापर बालू घाट,जहाँ माफियाओं का है राज, बालू का काला खेल बदस्तूर जारी हो चुका है।रात के अंधेरे यह खेल कई सफेदपोश के संरक्षण में चल रहा है।बालू माफियाओं द्वारा छापर देवनद दामोदर नदी तट के बालू घाट से रोजाना दो दर्जन से अधिक हाइवा वाहन से अवैध बालू का उठाव कर राँची व आसपास के इलाकों में बेच रहें है।इस खेल में जहाँ माफियाओं को रोजाना लाखो की कमाई हो रही है वहीं झारखंड सरकार को रोजाना लाखो रुपए राजस्व की हानि हो रही है।परंतु इसपर रोक लगाने के बजाय कई सफेदपोशों की मदद से यह काला खेल बदस्तूर जारी है।
डंप है सैकड़ो टन बालू : छापर देवनद दामोदर नदी तट के वन भूमि पर बालू माफियाओं द्वारा अवैध रूप से डंप किया गया सैकड़ो टन बालू। यही नहीं बल्कि ऐसा नजारा दामोदर नदी के चुरू गाढा से लेकर छापर 96 कालोनी व काली मंदिर मुख्य भाग तक देखने को मिलेगा। जहां बालू तस्करों द्वारा अवैध रूप से बालू का भंडारण किया गया है। अवैध भंडारण व परिवहन के पीछे का काला सच क्या है? आखिर किसके इशारे पर चल रहा है अवैध बालू का गोरखधंधा? इसके लिए जिम्मेवार कौन है यह सारा प्रश्न लोगो के जेहन में जैसे कौंध सा रहा है?
छापर बालू घाट से अवैध बालू उत्खनन से देवनद दामोदर नदी का अस्तित्व खतरे में है : प्रशासन से ग्रामीणों ने कई बार मांग की है कि बालू का अवैध उत्खनन बन्द होनी चाहिए।परन्तु न ही खनन विभाग ही माफियाओं के विरुद्ध आवश्यक कदम उठाता है और न ही वन विभाग,इस विषय पर ग्रामीणों का कहना है कि खनन व वन विभाग की मिलीभगत से सारा अवैध उत्खनन धड़ल्ले से चल रहा है।
नही हुई है बालू घाटों की नीलामी : झारखंड में बालू घाटों की नीलामी नही हुई है। वावजूद बालू घाटों से लगातार बालू का अवैध उठाव जारी है।जिसपर खनन विभाग भी मौन धारण किए हुए है।वहीँ वन विभाग भी इसका समर्थन करता नजर आ रहा है।क्योंकि वन विभाग के रास्ते छापर बालू घाट तक जाया जाता है और सारा बालू का उठाव किया जाता है।
स्टॉक चलान दिखा, सारा बालू का उठाव नदी से किया जा रहा है : बालू का यह काला खेल स्टॉक चालान दिखा कर किया जा रहा है,300 सीएफटी का चालान दिखा कर 700 सीएफटी ओवरलोड बालू लाद धड़ल्ले से मेन रोड के रास्ते बालू को ले जाया जाता है।जिसपर अंकुश लगाना शायद ही संभव है।क्योंकि कई दिग्गजों का हाथ इन माफियाओं के सर पर हमेशा बना रहता है।
प्रकृति पर असर : बालू के अवैध उत्तखन्न से प्रकृति पर व्यापक असर पड़ रहा है।नदियों में बालू उठाव के कारण नदी का बहाव पूरी तरह रुक चुका है कई स्थानों में पानी तक सुख चुकी है।पानी जमीन के अंदर धंस गयी है।आस पास के जंगलों पर भी इसका अच्छा खासा प्रभाव पड़ता नजर आ रहा है।लगातार गाड़ियों के जंगली क्षेत्रों से आवागमन के कारण गांव के साथ जंगल भी प्रदूषण के जद में आ गया है।परंतु माफियाओ को इससे कोई फर्क पड़ने वाला नही है वहीं वन विभाग तो मौन धारण कर बैठ गया है।इसका असर तो आनेवाले समय पर पड़ेगा, जब नदियाँ बंजर बन जाएगी और पानी के स्थान पर सिर्फ गढ़े नजर आएंगे।आखिरकार नदियां का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगी।और इसका जिम्मेदार कहीं न कहीं वरीय अधिकारियों से लेकर राज्य के महानुभव होंगें,जो अपने को राज्य का सबसे बड़ा हितैषी बतलाते नही थकते हैं।
दर्जनो माफिया है सक्रिय : अवैध बालू का उठाव छापर नदी घाट से हाइवा, टर्बो,डंफर,ट्रैक्टर जैसे वाहनों से होती है।बालू के इस खेल में दर्जनों माफिया सक्रिय है।