राजेश ओझा के कलम से…..
पहले नीति फिर नियुक्ति:
झारखण्ड बनने के 22 वर्ष बाद भी राज्य का विकास नहीं हो सका इसका कई कारण है ,लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण ठोस नीति का आभाव। राज्य में अब तक न स्थानीय नीति, नियोजन नीति न ही एक ठोस औद्योगिक नीति ,शिक्षा नीति न ही चिकित्सा नीति बन पाई है। जिस कारण राज्य लगातार पिछड़ता चला गया।
राज्य का समुचित विकास के लिए सबसे पहले ठोस स्थानीय-नियोजन जरूरी है। वर्ष भर आन्दोलन के पश्चात पिछले माह हेमंत केबिनेट ने आनन-फानन में 1932 आधारित स्थानीय नीति का प्रारुप लाया है जिसमें भी नौवी अनुसूचि का पेंच फसा दिया।
नियुक्ति से पहले नियोजन नीति क्यों जरूरी है:
1. नियोजन नीति का आभाव से सभी परीक्षा रद्द हो जाती है। पिछली रघुवर दास की सरकार ने 2016 में नियोजन नीति बनाई लेकिन राज्य को 11/13 में विभाजित कर दिया। जिसको उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया जिससे लाखो युवाओं की केरियर अधर में लटक गया।
हेमंत सरकार ने नियोजन नीति के बनाने के बदले नियुक्ति नियमावली बनाकर सॉट-कट रास्ता अपनाने की कोशिश की और जेपीएससी व जेएसएससी की नियमावली बनाई। जेपीएससी नियमावली 2020 में उम्र व आरक्षण सहित कई कमी थी वहीं जेएसएससी नियमावली 2021 में मैट्रिक-इंटर करके नियुक्ति को उलझाने का काम किया। इस प्रकार ठोस नियोजन नीति के आभाव से उत्पाद सिपाही, कारा चालक, एएनएम जैसे परीक्षा रद्द हुए, सीजीएल परीक्षा को दो बार रद्द रकना पड़ा। शिक्षक, पुलिस, दारोगा की हजारों-हजार नियुक्त प्रभावित हो रही है।
2. समय पर नियुक्ति नही होने पर लाखो युवाओ की उम्र बिना अवसर मिले खत्म हो गई है।
3. ठोस नियोजन नीति नहीं होने के कारण नियुक्ति भी होती है तो झारखण्ड से ज्यादा दुसरे राज्य के अभ्यर्थी नौकरी पाने में सफल हो जाते हैं। ऐसा रघुवर सरकार में धड़ले से देखा गया है। हमें पुर्व की गलती को दोहराना नहीं चाहिए।
4. ठोस नियोजन नीति नहीं बनने के कारण लगभग सभी परीक्षा कोर्ट चली जाती है और युवाओ का वर्षो बरबाद हो जाता है।
इसलिए हमें नियोजन नीति,नियुक्ति व उम्र सीमा छूट तीनों मुद्दा को एक साथ लेकर ट्विटर अभियान या सड़क पर आन्दोलन करना होगा।