रिपोर्ट : आकाश सोनी.
लाल – हरे रंग के ताप झारखंड आंदोलनकारी
मथुरा प्रसाद महतो झारखंड आंदोलनकारियों के रहबर
नायमुल्ला खान
झारखंड आंदोलनकारियों के लंबे संघर्ष की दास्तां आज कोई नई बात नहीं है. झारखंड आंदोलनकारियों ने जब-जब आंदोलन किया है एक नया इतिहास अपने साथ खड़ा किया है. सड़क से लेकर सदन तक झारखंड आंदोलनकारियों के मान-सम्मान पहचान की आवाज गूंजती रही है. यह बात कुछ और है कि सत्तासीन राजनेताओं ने झारखंड आंदोलनकारियों को चुनाव से पूर्व सिर्फ आश्वासन देते रहें और राजनीतिक मुद्दा बनाकर रखें. लेकिन सत्ता में आते व चुनाव जीतने के बाद झारखंड आंदोलनकारियों से दूरी बना लेते हैं. ऐसे में झारखंड आंदोलनकारियों को आंदोलन के लिए बाध्य होना लाजमी है. ऐसी स्थिति परिस्थितियों के बीच सड़क से लेकर सदन तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के सचेतक मथुरा प्रसाद महतो ने झारखंड आंदोलनकारियों का मसीहा बनकर सामने आए. श्री महतो ने झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा के संस्थापक पुष्कर महतो से एवं उनके विचारों से मिलकर गदगद हुए और आंदोलनकारियों के मुद्दे को लेकर लगातार सड़क से लेकर सदन तक उठाते रहे. श्री महतो ने सदन में झारखंड आंदोलनकारियों को मान सम्मान के साथ जेल जाने के बाध्यता समाप्त करने की मांग को लेकर प्रखर रहे. आज श्री महतो का साथ भाकपा माले के विधायक कॉ विनोद कुमार सिंह का साथ मिला उसके अलावा यूपीए की बैठक में जब झारखंड आंदोलनकारियों की बातें उठाई गई तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक एवं झारखंड आंदोलनकारी दीपक बिरवा ने मथुरा प्रसाद महतो का साथ दिया.झारखंड आंदोलनकारी सिर्फ मुद्दा ही नहीं बने बल्कि मशाल भी बनकर आज राज्य के चहुंओर प्रकाशमान हो उठे हैं.झारखंड आंदोलनकारियों को मान-सम्मान पहचान नियोजन व पेंशन दिलाने के लिए मथुरा प्रसाद महतो ने लगातार सड़क से लेकर सदन तक सरकार को घेरने का काम करते रहे. इतना ही नहीं श्री महतो ने मुख्यमंत्री से मिलकर कामरेड विनोद कुमार सिंह के साथ कई बार वार्ता किए अधिकारियों के साथ बैठक की और अधिकारियों को कई आवश्यक सुझाव भी दिए. झारखंड आंदोलनकारियों को नीतिगत तरीके से राजकीय मान-सम्मान पहचान नियोजन पेंशन देना जाना है. श्री महतो एवं विधायक कॉ विनोद कुमार सिंह के इस कदम से लाल और हरे झंडे का गठबंधन जबरदस्त हुआ है. लाल और हरे झंडे के समन्वय से झारखंड आंदोलनकारियों के अंदर नई चेतना जागृत हुई है और आज चाहूं ओर झारखंड आंदोलनकारी सफल आंदोलन ही नहीं बल्कि अपने मान-सम्मान पहचान, अस्तित्व एवं अधिकार के सवाल पर मुखर हुए हैं. झारखंड आंदोलनकारियों ने माना है कि अब हम मुक्त दर्शक बनकर खामोश नहीं रहेंगे बल्कि अपने सम्मान और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ते हुए शहादत देनी पड़े तो एक और संघर्ष और शहादत के लिए तैयार हैं. आंदोलनकारियों के इस जज्बे के आगे सरकार कई बार नतमस्तक हुई है लेकिन सत्ता में शामिल यूपीए गठबंधन के लोगों की सकारात्मक भूमिका नहीं रहने के कारण व राज्य के आला अधिकारियों में उदासीन पूर्ण रवैया के कारण भी झारखंड आंदोलनकारियों की स्थिति आज दयनीय है. जहां सुखाड़ की स्थिति है वहीं झारखंड आंदोलनकारियों की स्थिति बहुत सामान्य नहीं है भुखमरी एवं अस्वस्था की स्थिति में भी झारखंड आंदोलनकारी है. इस बीच आंदोलनकारियों में करो या मरो की स्थिति है.28 अक्टूबर 2020 से लगातार झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा झारखंड आंदोलनकारियों के सम्मान और अधिकार के सवाल को लेकर लगातार आंदोलन करती रही है .फलाफल यह हुआ कि झारखंड आंदोलनकारियों के आंदोलन के आगे सरकार को कई बार झुकना पड़ा और क्षैतिज के आधार पर पांच परसेंट आरक्षण, आंदोलनकारियों के पेंशन राशि में बढ़ोतरी, आंदोलनकारियों के अगुवा गरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर योजना शुरू करना सहित कई महत्वपूर्ण काम हुए हैं. इसके बावजूद व्यापक पैमाने पर झारखंड आंदोलनकारियों के सम्मान और अधिकार की लड़ाई निरंतर लड़ी जाती रही है इस कड़ी में मुखर होकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सचेतक मथुरा प्रसाद महतो संरक्षक बनकर आए और आंदोलनकारियों के साथ में उन्होंने कदमताल शुरू की जिसके कारण सरकार में एक सकारात्मक पहल तो हुई लेकिन क्रियान्वयन जिस गति से होना चाहिए वह गति धीमी है जिसे लेकर झारखंड आंदोलनकारियों में निराशा काफी है . इतना ही नहीं विधायक एवं झारखंड आंदोलनकारी मथुरा प्रसाद महतो एवं कामरेड विधायक विनोद कुमार सिंह में भी निराशा है. इसके बावजूद झारखंड आंदोलनकारियों को लेकर सड़क से लेकर सदन तक संघर्ष करना अपने आप में एक जीवटता का परिचय दिया जाता रहा है. आज झारखंड आंदोलनकारी सिर्फ मुद्दा ही नहीं बने हैं बल्कि आज झारखंड के मानचित्र में मशाल बनकर उभर पड़े हैं राज्य सरकार के नकारात्मक रुख होने से आने वाले राजनीतिक
भविष्य मिट्टी का कलश साबित हो सकेगा ऐसा प्रतीत भी होने लगा है. क्योंकि आज कई झारखंड आंदोलनकारी विधायक ऐसे हैं जो झारखंड आंदोलनकारियों के समर्थन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं.झारखंड आंदोलनकारियों की स्थिति आज की तारीख में ऐसी है कि कई विधानसभा चुनाव को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित भी कर सकते हैं. झारखंड आंदोलनकारियों के मसीहा मथुरा प्रसाद महतो ने झारखंड आंदोलनकारियों को लेकर इस लड़ाई को मंजिल तक पहुंचाने में जुटे हैं इससे सिर्फ धनबाद जिला ही नहीं बल्कि राज्य के दूसरे जिले के आंदोलनकारी भी आंदोलित हुए हैं और उनके प्रभाव में आए हैं इसलिए आने वाला समय राजनीति की दिशा और दशा झारखंड आंदोलनकारी भी तय करेंगे.