डालमिया कंपनी के विरुद्ध भूरैयतों ने की जोरदार नारेबाजी
रिपोर्ट : विजय मिश्रा, राँची
चतरा : जिले के टंडवा में डालमिया कंपनी को आवंटित वृंदा सिसई कोल परियोजना के भूरैयतों का कड़ा विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। मंगलवार को स्थानीय मुखिया निलेश ज्ञासेन की अगुवाई में प्रस्तावित परियोजना से विस्थापित होने के कगार पर खड़ा खैल्हा गांव में ग्रामीणों की बैठक आयोजित की गई जिसका कड़ा विरोध जताते हुए लोगों ने “डालमिया कंपनी वापस जाओ” के जोरदार नारेबाजी कर अपना विरोध जताया। मामले में भूरैयत नेता जगदीश महतो ने बताया कि ग्रामीण खनन परियोजना के लिए किसी भी कंपनी को अपनी जमीनें किसी भी सूरत में नहीं देंगे। आपको बता दें इससे खनन परियोजना चालू होने का मंसूबा पाले लोगों को करारा धक्का लगा है।
विदित हो कि चंद दिनों पूर्व हीं 12 जुलाई को कई गांवों के ग्रामीण व भूरैयतों ने बैठक कर कोल परियोजना का कड़ा विरोध करने का निर्णय लिया था। जिसके लिए डालमिया कंपनी व दलालों के विरुद्ध दीवार लेखन तक हो चुका है।
आखिर क्यों भूरैयतों में कोल खनन परियोजना के विरुद्ध इतने उग्र असंतोष का कारण!?
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें लगभग 10 वर्ष पूर्व परियोजना का जब आधार रखा गया उसे खंगालना होगा। उस कालक्रम में ग्रामीणों को जिस तरह से गुमराह करते हुए अभिजित नामक कंपनी व तात्कालिक प्रशासनिक अधिकारियों ने भूदाताओं को छला गया, यह आक्रोश उसका हीं परिणाम नजर आया है। एक भूरैयत अपनी मार्मिक व्यथा को बयान करते हुए बताया कि तब अभिजित कंपनी रैयती भूमि 6 लाख रुपए प्रति एकड़ व जमाबंदी भूमि 5 लाख रुपए प्रति एकड़ भुगतान करने का आश्वासन दिया था। जिससे खैल्हा,कटाही मिश्रौल व किसुनपुर गांव से लगभग 218 एकड़ भूमि अधिग्रहण कर कंपनी अपने मातहत के नाम पर कई एकड़ जमीन रजिस्ट्री तक करा लिया। वहीं दिए गए लाखों रुपए का चेक जब बाउंस कर गया, तब जनसुनवाई कार्यक्रम में जमाबंदी निरस्त करवाने का आश्वासन देने वाले राजस्व अधिकारी फिर दोबारा नजर नहीं आए। गनीमत तो यह रहा कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में कंपनी का नाम आया और बड़े पैमाने पर तब जालसाजी होने से लोग बच गए। लेकिन, लोगों का यह दर्द बड़ा सबक दे गया। बहरहाल, कमोबेश परियोजना स्थापन में लोगों को झांसा देकर अपना काम निकालने की नीति निजी व सरकारी दोनों कंपनियों की है। सीसीएल के आम्रपाली कोल परियोजना में भी 7 फरवरी 2014 को तमाम उच्चाधिकारियों ने भूरैयतों को पत्र देकर अपना काम निकाला था जिसकी चर्चा अब भी लगातार होती है।