पद्मश्री डाॅ रामदयाल मुंडा ने झारखंड को विश्वस्तर पर पहचान दिलाई : डॉ रामेश्वर
रांची। शिक्षाविद, साहित्यकार और कलाकार पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सह मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. मौके पर उन्होंने कहा कि एक साधारण किसान परिवार में जन्मे पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा को झारखंड ही नहीं देशभर में लोग गौरव से याद करते है। पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा ने ही झारखंड को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई. अपनी विद्वता के कारण उनकी पहचान बौद्धिक और सांस्कृतिक जगत में बनी और अदिवासी अधिकारों के लिए वे दिल्ली से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक आवाज उठायी, साथ ही विभिन्न आदिवासी समुदायों को संगठित किया। उन्होंने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा ने सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद, समाजशास्त्री और आदिवासी बुद्धिजीवी तथा साहित्यकार थे, बल्कि वे एक अप्रितम आदिवासी कलाकार थे। उन्होंने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिन्दी और अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य रचा। उनकी कई रचनाएं काफी लोकप्रिय हुई और झारखंड की आदिवासी लोकनृत्य ‘पाइका नाच’ को वैश्विक पहचान दिलायी। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में दलित, आदिवासी और दबे-कुचले समाज के स्वाभिमान और विश्व आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू करने में अहम योगदान दिया।
इस मौके पर प्रदेश कांग्रेस भवन में आयोजित एक समारोह में सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए डॉ. रामदयाल मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण कर और दीप प्रज्ज्वलित कर श्रद्धांजलि दी गयी एवं जन्म जयंती पर याद किया।
श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे एवं डा राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा आदिवासी समाज की भौतिकता एवं विशिष्टता को लेकर सदैव सजग रहे ।उनका जीवन भाषा, शोधार्थी ,प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष, प्रति कुलपति, कुलपति आदिवासी मामलों के विशिष्ट जानकार तथा राज्यसभा सांसद तक की जिम्मेदारियों के निर्वहन में बीता। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ रामदयाल मुंडा अपने गृह राज्य झारखंड में जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया। 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का सम्मान मिला तो 22 मार्च 2010 को यूपीए शासनकाल में राज्यसभा के सांसद बनाए गए ।उन्होंने रांची विश्वविद्यालय में आदिवासीऔर क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की जो देश के किसी भी विश्वविद्यालय में आदिवासी भाषा-साहित्य का यह पहला विभाग था।
कांग्रेस भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में मुख्य रूप से कांग्रेस नेता निरंजन पासवान, फिरोज रिजवी मुन्ना, जितेंद्र त्रिवेदी ,महेंद्र प्रसाद, मेहुल दूबे उपस्थित थे।