नई शिक्षा नीति लागू होने से पहले होनी चाहिए थी राज्यों से चर्चा
रांची : नई शिक्षा नीति को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, राज्यों के राज्पाल एवं मुख्यमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग का आयोजन हुआ. इस मीटिंग में शामिल सुबे के मुखिया हेमंत साेरेन ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा दे रही है. जिससे अवसर की समानता के मौलिक अधिकार पर आघात होगा. समवर्ती सूची का विषय होने के बाद भी राज्यों से इस संबंध में बात नहीं करना सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुंचाता है. इस नीति को लागू करने के लिए बजट का प्रावधान कहां से किया जाएगा वह इसमे स्पष्ट नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति में आदिवासी/दलित/ पिछड़े/ गरीब/ किसान-मजदूर के बच्चों के हितों की रक्षा करने संबधी प्रावधानों में स्पष्टता का अभाव,रोजगार नीति पर कोई चर्चा नहीं की गयी है. क्षेत्रीय भाषाओं में सिर्फ आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं का ही जिक्र है जो एक बहुत बड़े वर्ग के साथ नाइंसाफी होगी. झारखंड जैसे भौगोलिक रूप से पिछड़े/ दुर्गम क्षेत्र को नयी नीति से हानि उठानी पड़ेगी.
नीति बनने के बाद चर्चा का क्या फायेदा
हेमंत सोरेन ने कहा कि
आजादी के बाद यह सिर्फ तीसरा मौक़ा है जब शिक्षा नीति पर चर्चा हो रही है. उन्होंने इसके लिए केंद्र को बधाई भी दी. शिक्षा नीति के दूरगामी प्रभाव को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत एक विविधता से भरा देश है, यहां विभिन्न राज्यों की जरूरतें अलग-अलग हैं और जैसा कि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, इसे बनाने में सभी राज्यों के साथ खुले मन से चर्चा होनी चाहिए थी. जिससे कोई राज्य इसे अपने ऊपर थोपा हुआ नहीं माने. आगे उन्होंने इस नीति को बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और परामर्श के अभाव की बात कही. श्री सोरेन ने कहा कि आज जब नीति बनकर तैयार हो गयी है तब केंद्र सरकार राज्यों के साथ इस पर चर्चा कर रही है, lअच्छा होता कि इस पर पहले बात होती और सभी राज्य सक्रिय रूप से इसे बनाने में अपनी भागीदारी निभाते. श्री सोरेन ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि विगत कुछ समय से कई सार्वजनिक संस्थानों के निजीकरण के निर्णय , कॉमर्शियल माइनिंग, जीएसटी पर केंद्र सरकार के एकतरफ़ा निर्णय आदि के बाद अब नई शिक्षा नीति के नियमन में राज्यों से सलाह मशविरा का अभाव मुझे सहकारी संघवाद की बुनियाद पर आघात प्रतीत होती है. शिक्षा नीति का प्रभाव हम अगले दशक में देख पाएंगे और लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सरकारें 5 साल के लिए चुनी जाती है, ऐसे में भी इसे सही ढंग से लागू करने के लिए भारत सरकार को सभी राज्य सरकारों एवं राजनितिक दलों से चर्चा करनी चाहिए थी, जो वे नहीं कर पाए.
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि नीति में निजी और विदेशी संस्थानों को आमंत्रित कर रहे हैं परन्तु, आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान-मजदूर वर्ग के बच्चों के हितों की रक्षा के बारे में इस दस्तावेज में कुछ ठोस नहीं कहा गया है. क्या 70-80 % के बीच की जनसंख्या वाले इस बड़े वर्ग के बच्चे लाखों-करोड़ों की फीस दे पाएंगे ?
लाखों-करोड़ों की फीस वसूलने वाले निजी विश्व विद्यालय जब हमारे आज के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रोफेसरों के सामने बड़े-बड़े सैलरी पैकेज का ऑफर रखेंगे तो,हम अपने पुराने सरकारी संस्थानों के अच्छे प्रोफेसरों को कैसे रोक पाएंगे ? और इससे हानि किस वर्ग के बच्चे-बच्चियों को होगी ?
प्रधानमंत्री से मुखातिब होते हुए श्री सोरेन ने कहा कि आप और आपकी पार्टी ने 2010-11 में निजी सस्थानों को बढ़ावा देने सम्बन्धी निर्णय का कड़ा विरोध किया था जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे अन्य,दलों का समर्थन भी मिला था. तो किन परिस्थितियों में आज नई शिक्षा नीति में विदेशी निजी शिक्षण केन्द्रों को बढ़ावा देने का मन बना लिया गया ?
उन्होंने कहा कि नई नीति को लागू करने में खर्च होने वाली धन राशि कहाँ से आएगी ? झारखण्ड की बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ हमने शिक्षा में उन्नति को लेकर 2020-21 में राज्य के कुल बजट का 15.6% शिक्षा को समर्पित किया है जो कि पिछले वर्ष से 2 % ज्यादा है । नई नीति में कहा गया है कि जीडीपी का 6 % शिक्षा पर खर्च होगा । परन्तु, इसके क्रियान्वयन के चलते राज्यों के कंधों पर अतिरिक्त कितना बोझ आएगा उस पर कुछ बात नहीं की गयी है. नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में बढ़ावा देने की बात कही गयी है।उन्होंने खेद जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा करते वक़्त सिर्फ आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओ का ही जिक्र किया जा रहा है । मेरे राज्य में हो, मुंडारी , उरॉव (कुडुख) जैसी कम-से-कम 5 अन्य भाषाएँ हैं जिन्हें आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिल पाई है, मगर इनके बोलने वालों की संख्या 10-20 लाख है.
नई शिक्षा नीति में महाविद्यालयों को बहु-विषयक बनाने पर जोर देने की बात की गयी है। स्वाभाविक तौर पर ऐसे संस्थानों का निर्माण वहीं होगा जो पहले से विकसित हों, जहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा हो, आदि. झारखण्ड एवं इसके जैसे भौगौलिक बनावट वाले राज्यों में या एक ही राज्य के अन्दर कई ढंग के क्षेत्र होते हैं, तो वहां भी यह दिक्कत सामने आएगी . छतीसगढ़ में बिरले निवेशक हिम्मत करेंगे की ऐसा संस्थान बस्तर के इलाके में खोलें, पश्चिम बंगाल में वही हानि जंगल महल के इलाके को उठाना पडेगा तो उड़ीसा में कालाहांडी के क्षेत्र को होगा. हमारे उत्तर-पूर्व के राज्य इससे ज्यादा प्रभावित होंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति बनाते हुए हमें अवसर की समानता का जो मौलिक अधिकार है उसे ध्यान में रखना होगा. निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा देने से एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय होगा. आदिवासी/दलित/ पिछड़े/ गरीब/ किसान-मजदूर वर्ग से बड़ी हिम्मत करके कुछ लोग सफलता की सीढ़ी चढ़ आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं. यह उनसे सीढ़ी छीनने जैसा काम होगा. इस मौके पर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का और शिक्षा सचिव राहुल शर्मा भी मौजूद थें.