सांसद संजय सेठ ने लोकसभा में, धर्मांतरण का मुद्दा उठाया
झारखण्ड में आदिवासी समुदाय का धर्मांतरण बहुत बड़ा मुद्दा है। जब जब गैर भाजपा की सरकार बनी है, धर्मांतरण तेजी से बढ़ा है।
वर्तमान समय की बात। करें तो झारखंड में नई सरकार के गठन के बाद से ही कई क्षेत्रों से धर्मांतरण बढ़ने, लोभ लालच देने जैसे मामले सामने आने लगे हैं। चर्चों का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। सिमडेगा जैसे छोटे से जिले में 2400 से अधिक चर्च हैं। जिनमें 300 से अधिक चर्च सिर्फ सिमडेगा शहर में है। यह बताने के लिए पर्याप्त है कि किस कदर धर्मांतरण का प्रभाव झारखंड में बढ़ रहा है। और मिशनरियों भोले-भाले आदिवासियों को अपने चंगुल में फंसा रही हैं।
ईसाई मिशनरियों की ही संस्था निर्मल हृदय के द्वारा बच्चों की खरीद बिक्री का मामला काफी पहले से सामने आता रहा है। 2018 में अचानक से इसमें बड़ा खुलासा हुआ और सैकड़ों की संख्या में नवजात शिशुओं का खरीद बिक्री की बात सामने आई। गोद देने के नाम पर नवजात बच्चों की खरीद बिक्री होती थी। अविवाहित लड़कियाँ माँ बनती थीं और दूर्भाग्यपूर्ण यह कि इनमें ज्यादातर आदिवासी समुदाय की होती थीं।* मामले में मुकदमा भी हुआ, कई गिरफ्तारियां हुई और तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसकी जांच के निर्देश दिए। परंतु नई सरकार के गठन के साथ ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इतना ही नहीं धर्मांतरण और चर्च का बढ़ता प्रभाव आदिवासियों को कई रूपों में विखंडित कर रहा है। निर्मल हृदय का एक मामला सामने आया, निष्पक्षता से इसकी जांच हो तो ऐसे कई बड़े मामलों का खुलासा हो सकता है।
लॉकडाउन की बात करें तो जब पूरे देश में लोग सेवा भाव से काम करने को एक दूसरे से जुड़े थे, ऐसे में सिमडेगा,गुमला, लातेहार, गिरिडीह, रांची, खूंटी सहित कई ऐसे जिले हैं, जहां मिशनरियों ने राहत सामग्री तो दी परंतु बदले में धर्मांतरण की भी शर्त रखी। कई बार डर से ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते और अभी सरकार भी गैर भाजपाई है तो निसंदेह है नि:संकोच होकर मिशनरीयाँ अपना काम कर रही हैं।
झारखंड में ईसाई मिशनरियों धर्मांतरण तो करवा रही हैं परंतु किसी के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं कर रही। कुल मिलाकर मिशनरियों एक तीर से कई शिकार कर रही हैं। हिंदुओं और आदिवासियों को उनके धर्म के खिलाफ भड़का कर उनका धर्मांतरण कर रही है और फिर अपने यहां उनसे दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है। यह बात मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि 26 दिसंबर 2017 को ईसाई मिशनरियों से जुड़े एक बड़े अधिकारी आर. एल. फ्रांसिस ने अपने लेख में इसका जिक्र किया है। *आर एल फ्रांसिस ने स्पष्ट कहा है कि ईसाई मिशनरियों धर्मांतरण की आड़ में विस्तार वादी नीति पर काम कर रही हैं। यही वजह है कि सेवा की आड़ में धर्मांतरण तेजी से हो रहा है और उसके बाद चर्च जमीन इकट्ठा कर रहा है। अभी की बात करें तो भारत सरकार के बाद यदि सबसे अधिक जमीन किसी के पास है तो वह चर्च के पास है। ईसाई मिशनरियों के पास है और वह भी देश के कई बड़े पॉश इलाके में है।यह बताने के लिए काफी है कि कैसे मिशनरियों भोले-भाले आदिवासियों को बरगला कर, उनकी जमीन पर कब्जा कर रही हैं। निश्चित रूप से यह चिंता का विषय है क्योंकि इसके कारण हमारे भोले भाले आदिवासी भाई बंधु अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं। अपनी सांस्कृतिक पहचान खो रहे हैं और बदले में शोषण के शिकार हो रहे हैं।
भारत में चर्चों के द्वारा धर्मांतरित अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के लिए उन्हें फिर से अनुसूचित जाति और जनजाति में शामिल करवाने के लिए आंदोलन किया जाता है। और इस तथाकथित आंदोलन को चर्च समर्थन भी करता है। बड़ा गंभीर सवाल यह है कि जब कोई अपना धर्म, अपनी परंपराओं को छोड़कर चर्च के अधीन होता है तो फिर आखिर चर्चों को ऐसे आंदोलन के समर्थन का क्या मकसद हो सकता है? मैं बताना चाहूंगा कि झारखंड में जब नई सरकार बनी तो ईसाई मिशनरी व चर्च से जुड़े बड़े बड़े अधिकारियों, बिशप, पास्टर ने बयान दिया कि यह सरकार यीशु का आशीर्वाद है। क्रिसमस का तोहफा है। यह बयान कोई छोटा बयान नहीं था। आज भी झारखंड में आदिवासी हितों पर जब भी बात आती है तो यही पास्टर और पादरी आदिवासियों को भड़काने का काम करते हैं। कई बार आदिवासियों के हित में यह आंदोलन भी चलाते हैं। सोचनीय बिंदु यह है कि जब यह अपने आप को आदिवासी मानते नहीं, इन्होंने खुद को ईसाई स्वीकार कर लिया तो फिर किस हक से यह आदिवासियों को भड़काने का काम करते हैं?
निश्चित रूप से यह मामला गंभीर है और केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर राष्ट्र स्तर पर कठोर निर्णय लेने चाहिए। एक बात बताना चाहूंगा कि कैथोलिक चर्च की 1994 को पुणे में एक बैठक हुई थी। जिसमें यह स्पष्ट कहा गया था कि वह हिंदू अनुसूचित जाति व जनजाति से जुड़े लोगों को तोड़कर अपने बारे में ला रहा है। यह बहुत बड़ा बयान था और उसी दिशा में झारखंड में ये काम भी कर रहे हैं।
महोदय,
आर एल फ्रांसिस ही बताते हैं कि भारत में चर्च का नेतृत्व ढाई सौ मिलियन से अधिक भारतीय दलितों को चर्च के दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है जबकि बड़ी संख्या में पूर्व में भी दलित समुदाय से जुड़े लोग व आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग चर्च के झांसे में आ चुके हैं। इसके पीछे चर्च नेतृत्व की गहरी साजिश स्पष्ट दिखाई पड़ती है। यह बात कोई बाहर का व्यक्ति नहीं कह रहा बल्कि लंबे समय तक चर्च के संस्थानों से जुड़ा व्यक्ति कह रहा है। निश्चित रूप से सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
झारखंड सहित पूरे देश में ईसाई समाज से जुड़ा एक बड़ा वर्ग अनुसूचित जाति व जनजाति से ईसाई बने लोगों को चर्च संस्थानों में उनके अधिकारों की मांग को लेकर आंदोलित है। ईसाइयों की तरफ से सार्वजनिक रूप से ऐसी मांग पहले भी कई बार की जा चुकी है। इसके पूर्व ईसाई मिशनरी ही सरकार से दलित ईसाईयों व आदिवासी ईसाइयों को पुनः अनुसूचित जाति व जनजाति की श्रेणी में शामिल करने की मांग करती रही है। कई धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियां भी चर्च के नेतृत्व की इस मांग को समय-समय पर आग देने का काम करती रही हैं। यह बहुत गहरी और बड़ी साजिश है।
झारखंड जैसे राज्य में ईसाइयों का बढ़ता प्रभाव ना सिर्फ आदिवासियों को उनके परंपराओं, धर्म-कर्म से तोड़ने का काम कर रहा है बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में मैं सरकार से यह मांग करता हूं कि राष्ट्र स्तर पर व्यापक चर्चा कर स्वतंत्र इकाई से इस पूरे प्रकरण की जांच करवाई जाए और आदिवासी हितों, उनकी परंपराओं, उनकी संस्कृतियों की रक्षा की जाए।
उक्त जानकारी संजय पोद्दार ने दी