इस बार 26 जनवरी को हमने अपना 74वां गणतंत्र दिवस मनाया। 74 साल के गणतंत्र का मतलब है कि हमें प्राप्त हमारे अधिकार और संविधान भी 74 साल के हो गए हैं। इस गणतंत्र दिवस को गत वर्षों की भांति ही बड़े धूमधाम से मनाया भी गया।
लेकिन सवाल यह है कि क्या 73 वर्ष बाद भी हम आज़ादी और अधिकार, सामाजिक और आर्थिक न्याय, मान-सम्मान के लिए लड़ रहे हैं? इस खूबसूरत कहे जाने वाले संविधान के लागू हुए 73 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह सवाल जीवंत है और लगातार देश की सिविल सोसायटी द्वारा समय-समय पर उठाया जाता रहा है।
ऐसी ही तस्वीर आज बुढ़मू के ईंट भट्ठे से देखने को मिली जहां संविधान का एक मौलिक अधिकार धराशाही नजर आया. जिन हाथों को कॉपी पेंसिल होनी चाहिए थी, उसमें ईट ढोने के लिए रेड़ी पकड़े देखना इस गणतंत्र पर एक चोट है. सवाल सिस्टम और समाजिक समानता की वकालत करने वालों से भी होनी चाहिए की आखिर चूक हो कहां रही है कि हमें गाहे बेगाहे इन तस्वीरों का सामना करना पड़ता है. यह तस्वीर गणतंत्र को कचोटती है.